Kanyadan Class 10 Summary | कन्यादान | क्षितिज | हिंदी अ | अध्याय 8 |

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Kanyadan Class 10 Summary | कन्यादान | क्षितिज | हिंदी अ | अध्याय 8 | कक्षा 10 |

कवि परिचय

कवि ऋतुराज का जीवन परिचय : कवि ऋतुराज का जन्म राजस्थान के भरतपुर जिले में सन 1940 में हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर से अंग्रेजी  साहित्य से  एम. ए. की उपाधि  प्राप्त  की।  ऋतुराज  ने अनेक काव्य संग्रहों की रचना की | उनके अब तक प्रकाशित काव्य-संग्रहों में ‘पुल पानी में’, ‘एक मरणधर्मा और अन्य’, ‘सूरत निरत’ तथा ‘लीला अरविंद’ प्रमुख हैं।  उन्हें अपने काव्य सृजन के लिए  अनेक पुरस्कारों से सम्मानित किया गया  है जैसे कि सोमदत्त सम्मान, परिमल सम्मान, मीरा पुरस्कार, पहल सम्मान तथा बिहारी पुरस्कार  आदि । उन्होंने  अपनी कविताओं में सामाजिक यथार्थ के स्थान देते हुए  शोषण एवं  रूढ़ियों को लेकर काव्य सृजन किया ।

कन्यादान कविता का सार/Kanyadan Class 10 Summary

प्रस्तुत कविता में कवि ऋतुराज ने माँ और बेटी के बीच  के भावनात्मक एवं मार्मिक संबंध का चित्रण किया है ।  एक मां के लिए उसकी बेटी उसका पूरा संसार होती है  और उसकी जीवन भर की समस्त संचित पूँजी होती है   एक मां अपनी बेटी को अपने सारे संस्कार देते हुए उसका पालन-पोषण बड़े ही लाड़ – प्यार से करती है  जब एक माँ अपनी बेटी को शादी के बाद विदा करती है, तो उसे ऐसा लगता है, मानो उसके जीवन की सारी जमा पूँजी  दूसरे को सौंप दी  हो।  अपनी पुत्री के विवाह के समय एक माता अपनी पुत्री से बहुत अधिक  प्रेम  करने के कारण देश  इस बात को लेकर भयभीत रहती है  कि उनकी बेटी नए घर में जा रही है, कहीं उसे कुछ परेशानी ना हो, या उसे कोई अत्याचार न सहना पड़े। इन सब के कारण माँ चिंतित होकर अपनी फूल-सी बेटी को भले-बुरे की शिक्षा देने लगती है I  मां को चिंता है कि उसकी बेटी को दुखों का कोई अनुभव नहीं है , उसने सिर्फ अभी कुछ खुशियां ही देखी हैं और उन्हीं के सपने सजाए हैं। अबे माता अपनी पुत्री को शिक्षा दे रही है कि  पुत्री तुम्हें अब अपने सुख सपनों से बाहर आ जाना चाहिए  और जीवन की वास्तविकता को स्वीकार करना चाहिए  अपने नए घर में जाकर तुम अपनी सुंदरता पर  मुग्ध  होकर  काम करने से जी मत चुराना  और ना ही कमजोर बनकर अत्याचारों को सहन करना  तुम लड़की हो इसलिए तुम्हें मर्यादाओं  का पालन तो करना है परंतु दुर्बल बनकर शोषण को स्वीकार नहीं करना है I

कविता  की व्याख्या

कितना प्रामाणिक था उसका दुख

लड़की को दान में देते वक्त

जैसे वही उसकी अंतिम पूँजी हो

भावार्थ :- इन पंक्तियों में कवि बता रहा  है कि अपनी  पुत्री का कन्यादान अर्थात  विवाह  के बाद  उसे विदा करते  समय  एक माता का दुःख बड़ा ही स्वाभाविक और प्रामाणिक  होता है। हर माता को यह लगता है कि उसकी जान से प्यारी बेटी  उसके  संपूर्ण जीवन की आख़िरी जमा पूँजी  है और वह विवाह के बाद उससे दूर चली जाएगी ।  एक माता अपनी पुत्री का पालन – पोषण बहुत ही प्यार और दुलार के साथ करती है तथा उसे अपने सभी संस्कार दे देती है I उसकी पुत्री उसकी सबसे बड़ी  सखी  होती है और वह विवाह के बाद उससे दूर हो जाती है और अपनी पुत्री से दूर होना उसकी माता के लिए सबसे अधिक पीड़ादायक स्थिति होती है I

लड़की अभी सयानी नहीं थी

अभी इतनी भोली सरल थी

कि उसे सुख का आभास तो होता था

लेकिन दुख बाँचना नहीं आता था

पाठिका थी वह धुँधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की

भावार्थ :- आगे कवि ऋतुराज कहते हैं कि लड़की बड़ी तो हो गई थी, लेकिन पूरी तरह से सयानी नहीं हुई थी, अर्थात दुनियादारी की समझ अभी तक उसमें नहीं आयी थी। उसने अभी तक अपने घर के बाहर की दुनिया नहीं देखी थी।  उसने अभी तक अपने जीवन में केवल सुखों को भोगा था I उसे दुख का तनिक भी आभास नहीं था I अर्थात उसका कभी अभाव, कष्ट या दुख से  सामना नहीं हुआ था I  उसे जीवन के संघर्ष एवं कठिनाइयों का कोई ज्ञान नहीं था । उसका जीवन अभी तक बड़ी सरलता से बीत रहा था। यही कारण है कि उसे ख़ुशियाँ मनाना तो आता था, लेकिन परेशानियों का सामना कैसे किया जाए, ये अभी तक नहीं पता था।  वह बहुत सीधी और  भोली  थी   तथा उसके लिए घर  से  बाहर की दुनिया  एक धुंधली तस्वीर  के समान  थी,  जिसको उसने  कभी ठीक से  देखा तक नहीं था ।  कवि के अनुसार जब तक कोई व्यक्ति बाहर की दुनिया  का सामना नहीं करता है तब तक उसे जीवन की वास्तविक समझ नहीं आ पाती है  और लड़की क्योंकि केवल परिवार में ही रही थी, इसलिए उसे  सुखों  का तो आभास था परंतु  दुखों का सामना करना  नहीं आता था I

माँ ने कहा पानी में झाँककर

अपने चेहरे पर मत रीझना

आग रोटियाँ सेंकने के लिए है

जलने के लिए नहीं

वस्त्र और आभूषण शाब्दिक भ्रमों की तरह

बंधन हैं स्त्री जीवन के

भावार्थ :-  इन पंक्तियों में  एक माता अपनी पुत्री को विदाई के वक्त  कुछ महत्वपूर्ण   नसीहतें  दे रही है कि उसे ससुराल में किस तरह रहना है और  किन-किन बातों का ख्याल रखना है । सबसे पहले माँ अपनी बेटी को  बताती है कि  तुम अपनी सुंदरता पर कभी मत इतराना क्योंकि  जीवन की वास्तविक परिस्थितियों में  सुंदरता से ज्यादा हमारे गुण काम आते हैं। फिर माँ अपनी बेटी को कहती है कि आग रोटियाँ पकाने के लिए होती है, न की  स्वयं जलने के लिए अर्थात वह अपने बेटी को यह कहना चाह रही हैं कि अपनी जिम्मेदारियों को अवश्य निभाना,  सभी का सम्मान करना और सभी को प्रेम देना परन्तु किसी के  अत्याचार को मत सहन  करना । माँ अपनी पुत्री से  कहती है कि वस्त्र  और  आभूषणों  के मोह में कभी  मत  पड़ना,  यह  केवल एक बंधन की तरह है ,  जिनमें बंधकर एक लड़की अपनी वास्तविक शक्ति को भूल जाती है  और इनके चक्कर में बसा-बसाया  घर – संसार भी उजड़ सकता है।

माँ ने कहा लड़की होना

पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।

भावार्थ :-  इन पंक्तियों के माध्यम से एक माता अपनी नादान एवं भोली  पुत्री को शिक्षा दे रही है कि  उसे लड़कियों वाले सभी गुणों को अपनाना है | अर्थात उसमें दया, करुणा, प्रेम , सेवा भाव  और परिवार के प्रति समर्पण की भावना तो होनी चाहिए  परंतु कभी भी अपने आप को  किसी को भी एक लड़की  के रूप में  असहाय  व दुर्बल  नहीं समझने देना है  और अपने आप को हर शोषण व अत्याचार से बचाना है |

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NCERT Solutions For कन्यादान, अध्याय  8

प्रश्न 1. आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसा मत दिखाई देना?

उत्तर-  एक मां अपनी पुत्री की सच्ची  सखी और गुरु होती है |  वह उसे जीवन की प्रत्येक परिस्थिति से जूझना और  उसका सामना करना  सिखाती है | यही कारण है कि माता आपकी पुत्री को शिक्षा दे रही है  कि उसे  नारी सुलभ सभी गुणों  जैसे की दया, करुणा , सहयोग , सेवा भाव  आदि को तो अपनाना है  परंतु कभी भी  एक दुर्बल नारी के रूप में अपने आप को प्रस्तुत नहीं करना है , क्योंकि यह देखा जाता है कि नारी को दुर्बल एवं कमजोर समझ कर उसके ससुराल वाले उसका शोषण करने लग जाते हैं | अतः माता अपनी पुत्री को शिक्षा दे रही है कि उसे कमजोर बनकर अत्याचार को सहन नहीं करना है बल्कि शोषण एवं अत्याचार का विरोध करना है  और नारी वाले सभी गुणों को भी  बनाए रखना है |

प्रश्न 2. आग रोटियाँ सेंकने के लिए है। जलने के लिए नहीं।

(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों जरूरी समझा?

उत्तर- (क)  इन पंक्तियों से यह प्रकट होता है कि अक्सर समाज में  महिलाओं पर उनके ससुराल पक्ष के लोगों के द्वारा अत्याचार किया जाता है एवं उनका जीवन  बद से बदतर कर दिया जाता है | महिलाएं अपनी इस अवस्था से मुक्ति पाने के लिए छटपटाते रहती हैं और  इससे हार मानकर कुछ महिलाएं अपनी जीवन लीला तक को समाप्त कर डालती हैं |  ऐसे में एक माता अपनी पुत्री को सही शिक्षा देकर उसे इस प्रकार की स्थिति से बचा सकती है |

(ख)  माता यह जानती है कि उसकी पुत्री बहुत भोली और नासमझ है | उसने समाज के भयावह एवं विकृत रूप को नहीं देखा है | तथा वह बहुत संवेदनशील है और अभी ऐसी किसी भी परिस्थिति का सामना करने के लिए तैयार नहीं है | अतः माता अपनी पुत्री को यह शिक्षा दे रही है कि उसे इस प्रकार की परिस्थिति का सामना किस प्रकार करना है और ऐसी किसी भी परिस्थिति से उसे हार नहीं माननी है |

प्रश्न 3. ‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की

कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की’

इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।

उत्तर- इन पंक्तियों को पढ़ने से ज्ञात होता है  की लड़की अभी बहुत भोली और मासूम है | उसने अभी तक के जीवन में केवल जीवन के अच्छे पक्ष को देखा है | अभी तक उसके जीवन में  केवल खुशियां ही खुशियां आई हैं, उसने कभी दुखों का सामना नहीं किया और न हीं  उसका सामना अभी तक समाज के घिनौने एवं विकृत स्वरूप से पड़ा है l बालिका  अपने  वैवाहिक जीवन की सुखद स्मृतियों में खोई हुई है |  उसे ससुराल पक्ष के विकृत , लोभी एवं भयावह स्वरूप की कोई जानकारी नहीं है |

प्रश्न 4. माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी?

उत्तर- एक मां के लिए उसकी बेटी उसकी सबसे बड़ी सहयोगी होती है , जो उसके सुख- दुख में उसके साथ रहती है | उसके हर छोटे-बड़े कार्य में उसका हाथ बटाती है और उसकी भावनाओं को भलीभांति समझती है | एक माता भी अपने सभी संस्कार एवं गुण अपनी पुत्री में डाल देती है | इस प्रकार  एक माता के लिए उसकी पुत्री उसकी जीवन भर की कमाई होती है | परंतु यही पुत्री एक न एक दिन  उसे किसी दूसरे व्यक्ति को सौंपनी होती है | अतः एक मां को अपनी पुत्री अपनी अंतिम पूँजी’ के समान दिखाई देती है |

प्रश्न 5. माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी?

उत्तर- मां ने कन्यादान करते वक्त अपनी पुत्री को निम्नलिखित शिक्षाएं प्रदान की –

  • मां ने अपनी पुत्री को यह शिक्षा दी कि कभी भी अपने चेहरे की सुंदरता पर  मुग्ध  मत होना  क्योंकि लड़की की सुंदरता उसके शरीर से नहीं बल्कि उसके गुणों से होती है |
  • मां ने अपनी पुत्री को यह भी शिक्षा प्रदान की कि वह कभी भी परिस्थितियों से हार मान कर जीवन को समाप्त करने का निर्णय नहीं ले | अर्थात आग रोटियां सेकने के काम में लें न कि अपने आप को जलाने के काम में |
  • मां ने अपनी पुत्री को शिक्षा दी कि वह कभी भी वस्त्र और आभूषणों के झूठे मोह में नहीं  पडे |  वस्त्र और आभूषण स्त्री के जीवन के बंधन है न कि उसके जीवन की पूर्णता |
  • माता ने अपनी पुत्री को यह भी शिक्षा दी  कि वह लड़कियों के  गुणों को तो अपनाएं परंतु लड़कियों के समान दुर्बल बन कर नहीं रहे | अर्थात कभी भी शोषण  एवं अत्याचार को स्वीकार नहीं करें |

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6. आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?

उत्तर- मेरे विचार से कन्या के साथ दान शब्द का पूर्णतया अनुचित है, क्योंकि दान किसी वस्तु का किया जाता है और एक लड़की कोई वस्तु नहीं होती है | उसमें भावनाएं होती हैं, उसकी कुछ अभिलाषाएं होती हैं और वह अपने जीवन को अपने तरीके से जीना चाहती है | अतः हम उस पर अपनी  इच्छा  थोप  कर  उसे किसी  के भी साथ नहीं  बांध  सकते हैं |

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

प्रश्न. पुत्री का विवाह किसी भी माता के लिए एक सुखद स्थिति होती है परंतु यहां पर माता क्यों उदास है ?

उत्तर – माता इस कारण से उदास है क्योंकि उसकी सबसे अभिन्न संगिनी उसकी पुत्री उसका साथ छोड़ कर के जा रही है| अब वह अपने सुख – दुख की बात अपने मन की बात किससे करेगी और कौन उसका इतना ध्यान रखेगा | उसकी पुत्री  का ससुराल पक्ष उसे किस प्रकार से रखेगा I इन्हीं सारी चिंताओं के चलते माता उदास है |

प्रश्न 2.  कवि ने यह क्यों कहा है कि लड़की को अभी  दुख बांचना नहीं आता है ?

उत्तर – कवि ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि  लड़की को अपने माता – पिता के परिवार में अभी तक केवल सुखों  तो भोगने का अवसर मिला है | एक भी ऐसा अवसर उसके जीवन में नहीं आया है जहां उसे दुखों का कोई अनुभव हुआ हो  परंतु अब वह ऐसे जीवन में प्रवेश करने जा रही है जहां पर सुख और दुख दोनों उसके जीवन में आ सकते हैं | अतः दुखों का कोई अनुभव न होने के कारण कवि ने यह कहा है कि लड़की को दुख बांचना नहीं आता है |

प्रश्न 3 .  अपनी पुत्री के विवाह के समय एक मां को चिंता क्यों हो रही थी ?

 उत्तर –  अपनी पुत्री के विवाह के समय एक मां को चिंता इसलिए हो रही थी क्योंकि उसकी पुत्री अभी भोली – भाली और मासूम है |  उसे जीवन की कठिन चुनौतियों का कोई अनुभव नहीं है | उसने अभी तक केवल सुखों को भोगा है  और दुखों का उसे कोई अनुभव नहीं है | वह बहुत सरल और सीधी है तथा  सारे संसार को अपने जैसा सरल मानती है  परंतु वास्तविकता यह नहीं है | वास्तविकता उसकी कल्पना से कहीं अलग है  इसीलिए एक माता को उसके भविष्य को लेकर चिंता हो रही है |

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