लखनवी अंदाज | Lakhnavi Andaaz | पाठ 12 |  क्षितिज | कक्षा  10 | कहानी |

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लखनवी अंदाज | Lakhnavi Andaz | लेखक यशपाल | पाठ 12 |  क्षितिज | कक्षा  10 | लेखन विधा – कहानी |

 यशपाल का जीवन परिचय

लखनवी अंदाज कहानी के लेखक यशपाल हैं।  यशपाल का जन्म सन 1903 में पंजाब के फिरोजपुर छावनी में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा कांगड़ा में रहकर प्राप्त की  और उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज से बी.ए  की शिक्षा पूर्ण की । यहीं  रहते हुए  उनका परिचय भगत सिंह और सुखदेव से हुआ  जो कि भारत को आजाद करवाने के लिए क्रांतिकारी गतिविधियों का सतत रूप से संचालन कर रहे थे  तथा युवाओं को क्रांतिकारी आंदोलन से जोड़ने का प्रयास कर रहे थे  ।  इन्हीं के संपर्क में आकर  यशपाल के मन में राष्ट्रभक्ति का भाव जागा  और वे  भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ गए। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान  उन्हें  कई बार जेल भी  जाना पड़ा । उनकी मृत्यु 1976  में हुई।

वर्णित विषय –  यशपाल एक सामाजिक सरोकारों के यथार्थवादी लेखक थे  उन्होंने अपने साहित्य में  सामाजिक विषमता  राजनीतिक पाखंड और रूढ़ियों के खिलाफ  विद्रोह का स्वर मुखर किया  वे सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति में  अपने साहित्य के माध्यम से बदलाव लाना चाहते थे

यशपाल की प्रमुख रचनाएं :-

यशपाल की रचनाओं में आम आदमी के सरोकारों की उपस्थिति साफ दिखती है। वो यथार्थवादी शैली के विशिष्ट रचनाकार थे। सामाजिक विषमता , राजनीतिक पाखंड और रूढ़िवादियों के खिलाफ उनकी रचनाएं मुखर हैं।

कहानी संग्रह – ज्ञानदान , तर्क का तूफान , पिंजरे की उड़ान , वा दुलिया , फूलों का कुर्ता।

उपन्यास – झूठा सच (यह भारत विभाजन की त्रासदी का मार्मिक दस्तावेज है)

अन्य प्रमुख उपन्यास – अमिता , दिव्या , पार्टी कामरेड , दादा कामरेड , मेरी तेरी उसकी बात।

लखनवी अंदाज पाठ का सार/Summary

लखनवी अंदाज कहानी  का आरंभ कुछ इस तरह होता है । लेखक को अपने घर से  कुछ  दूर  पर कहीं  जाना था। लेखक ने भीड़ से बचने  और  एकांत में किसी नई कहानी के बारे में सोचने   की मंशा से व ट्रेन की खिड़की से बाहर के प्राकृतिक दृश्यों को निहारने के लिए लोकल ट्रेन (मुफस्सिल) के सेकंड क्लास का कुछ महंगा टिकट खरीद लिया। जब  लेखक   स्टेशन पहुंचा तो गाड़ी छूटने ही वाली थी। इसीलिए वो सेकंड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खाली समझकर उसमें चढ़  गया , लेकिन जिस डिब्बे को वो खाली समझकर  लेखक के एकांत  की तलाश में चढ़ा था, वह डब्बा खाली नहीं था  और उस डब्बे में पहले से ही एक लखनवी नवाब बहुत आराम से पालथी मारकर बैठे हुए थे और उनके सामने दो ताजे  बालम  नस्ल  के खीरे एक तौलिए के ऊपर रखे हुए थे।

लेखक को देखकर नवाब साहब  के हाव भाव में कोई परिवर्तन नहीं आया  लेखक को ऐसा लगा जैसे  उनका उस डब्बे में आना नवाब साहब को पसंद नहीं आया हो | शायद नवाब साहब भी लेखक की तरह एकांत तलाश में उस डब्बे में सवार हुए थे  परंतु लेखक ने उस डिब्बे में आकर  उनके एकांत में खलल डाल दिया था  ।  नवाब साहब ने  लेखक से बात करने में भी कोई उत्साह या रूचि नहीं दिखाई । लेखक उनके सामने वाली खाली सीट पर बैठ गए। लेखक खाली बैठे थे और कल्पनायें करने की उनकी पुरानी आदत थी। इसलिए वो उनके आने से नवाब साहब को होने वाली असुविधा का अनुमान लगाने लगे। वो सोच रहे थे शायद नवाब साहब ने अकेले सुकून से यात्रा करने की इच्छा से सेकंड क्लास का टिकट ले लिया होगा । लेकिन अब उनको यह देखकर बिल्कुल भी अच्छा नहीं लग रहा है कि  कोई शहरी  सफेदपोश  आदमी  उन्हें सेकंड क्लास में  इस प्रकार सफर करते देखें। उन्होंने अकेले सफर में वक्त अच्छे से कट जाए यही सोचकर दो खीरे खरीदे  लिए होंगे परंतु अब किसी सफेदपोश  शहरी आदमी के सामने खीरा  खाने में उन्हें संकोच का अनुभव हो रहा होगा |

नवाब साहब गाड़ी की खिड़की से लगातार बाहर  की ओर देख रहे थे और लेखक कनखियों से नवाब साहब की ओर देख रहे थे। अचानक नवाब साहब ने लेखक से  मुखातिब हुए  और उन्होंने लेखक से खीरा खाने के लिए पूछा लेकिन लेखक ने नवाब साहब को शुक्रिया कहते हुए मना कर दिया। उसके बाद नवाब साहब ने दोनों खीरों को  बहुत ही तरीके से  धोकर , उसे छोटी-छोटी  लंबी – लंबी  फाँकों ( टुकड़ों ) में काटा। फिर उस  पर  अपने साथ लाई कागज की पुड़िया से निकालकर  भुना हुआ जीरा , नमक  और  मिर्च लगा कर उनको तौलिये  पर करीने से सजाया। इसके बाद नवाब साहब ने एक  बार  फिर से लेखक से खीरे खाने के बारे में पूछा।  लेखक के मुंह में पानी तो आ रहा था  और खीरा खाने की उनकी इच्छा भी हो रही थी  परंतु क्योंकि लेखक पहले ही खीरा खाने से मना कर चुके थे इसीलिए उन्होंने अपना आत्म सम्मान बनाए रखने के लिए इस बार पेट खराब होने का बहाना बनाकर खीरा खाने से  मना  कर दिया।

लेखक के मना करने के बाद नवाब साहब ने नमक – मिर्ची लगे उन खीरे के टुकड़ों को बड़ी तन्मयता से  निहारा  और फिर खिड़की  से  बाहर  की ओर  देखते हुए  एक गहरी सांस ली। उसके बाद नवाब साहब   ने खीरे की एक फाँक (टुकड़े) को  उठाया और उसे होठों  के पास  ले गए  फिर उन्होंने फाँक को सूंघा। स्वाद के आनंद में नवाब साहब की पलकें मूँद गई  और मुंह में पानी भर आया | मुंह में भर आए पानी का घूंट उनके  गले  से  नीचे  उतर गया। खीरे के टुकड़े को  सूंघने के बाद  नवाब साहब ने उस टुकड़े को खिड़की से बाहर  की ओर फेंक दिया। इसी प्रकार नवाब साहब खीरे के हर टुकड़े को उठाकर  होठों के पास ले जाते और  फिर उसको सूंघते और उसके बाद उसे खिड़की से बाहर फेंक देते।  लेखक कनखियों से यह सारा दृश्य देख रहा था | खीरे के सभी  टुकड़ों को बाहर फेंकने के बाद उन्होंने आराम से तौलिए से हाथ और होंठों को पोछा और फिर बड़े गर्व से लेखक की तरफ देखा। जैसे  वे लेखक को कहना चाह रहे हो कि “यही है खानदानी रईसों का तरीका”। रईस लोग खीरों को खाते नहीं है  बल्कि केवल सूंघकर  ही उनका रसास्वादन करते हैं |

नवाब साहब खीरे  को धोने, छीलने,  काटने  और इस्तेमाल  करने से थक गए  और वे लेट कर आराम करने लगे ।  इधर लेखक सोच रहा था  कि “क्या सिर्फ खीरे को सूंघने से ही पेट भर  सकता है”।  उसी समय  नवाब साहब ने एक जोरदार डकार ली और बोले “खीरा लजीज होता है पर पेट पर बोझ डाल देता है और हाजमा खराब कर देता है । ” यह सुनकर लेखक के ज्ञान चक्षु खुल गए। उन्होंने सोचा कि जब खीरे की सुगंध और स्वाद की कल्पना से ही पेट भर कर डकार ली जा सकती है , तो बिना किसी विचार , घटना , कथावस्तु और पात्रों के सिर्फ लेखक की इच्छा मात्र से “नई कहानी” भी तो लिखी जा सकती है।

कहानी में निहित व्यंग –

एक कहानी के द्वारा लेखक यशपाल यह बताना चाहता है कि  बिना  कथा  एवं पात्रों के कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती है  परंतु एक स्वतंत्र रचना के रूप में उसे पढ़ा जा सकता है | इस कहानी के माध्यम से यशपाल  उस पतनशील सामंती वर्ग पर कटाक्ष कर रहे हैं  जो , वास्तविकता से बेखबर होकर एक बनावटी जीवनशैली जीने का आदी हो गया है| अतः यशपाल उस वर्ग को झकझोर कर उसे अपने कर्तव्य की याद दिलाना चाहता है और उसे कर्म करने के लिए प्रेरित करना चाहता है |

NCERT Solutions for लखनवी अंदाज़

प्रश्न 1. लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं?

उत्तर- लेखक को नवाब साहब के निम्नलिखित हाव-भावों से हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हैं-

  • लेखक के डब्बे में प्रवेश करने पर नवाब साहब ने उनकी ओर कोई ध्यान नहीं दिया |
  • नवाब साहब ने लेखक से बातचीत करने में कोई रुचि नहीं दिखाई i
  • नवाब साहब की आंखों और चेहरे पर असंतोष के भाव  उमड़ा है जैसे कि उन्हें लेखक  के द्वारा अपने एकांत में खलल डालना अच्छा नहीं लगा हो l
  • नवाब साहब लेखक की और ना देखकर खिड़की से बाहर की ओर देख रहे थे l

प्रश्न 2. नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर  ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है?

उत्तर- नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूंघकर  ही खिड़की से बाहर फेंक दिया l इस प्रकार की गतिविधि से वे अपने  नवाबी  ठाट को दिखाना चाहते थे l  वे  यह दिखाना चाहते थे  कि रईस लोग कैसे किसी चीज का रसास्वादन करते हैं और वह किस प्रकार आम आदमी से भिन्न होते हैं  I नवाब साहब का ऐसा करना उनकी दिखावे की फितरत को दिखलाता है I नवाब साहब अपनी इस प्रकार की हरकत के द्वारा यह दिखाना चाहते थे कि वे आम लोगों से बिल्कुल भिन्न है l

प्रश्न 3. बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?

उत्तर-  लेखक का यह मानना है कि किसी विचार घटना या पात्रों के बिना कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती है I कहानी लिखने के लिए इन सभी तत्वों का होना परम आवश्यक है I  मैं  लेखक की इस बात से पूर्णतया सहमत हूं   और मानता हूं कि बिना किसी  उत्कृष्ट विचार , घटना  या पात्रों की कल्पना के कोई अच्छी कहानी नहीं लिखी जा सकती है I कहानी  एक  मनोरंजनात्मक एवं उद्देश्य से  पूर्ण रचना है  और एक श्रेष्ठ कहानी के लेखन के लिए इन सभी तत्वों की  आवश्यकता होती है I

प्रश्न 4. आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?

उत्तर- मैं इस निबंध को कुछ अन्य शीर्षक  देना चाहता हूं  जैसे कि नवाबी अंदाज , नवाबों की बात , दिखावे की जिंदगी आदि I  यह सभी शीर्षक  नवाब या रईस लोगों की दिखावे की जिंदगी  को प्रदर्शित करते हैं I

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5. (क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।

(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?

उत्तर-  जब लेखक सेकंड क्लास के डिब्बे में चढ़ा तो वहां पर  उसे एक नवाब साहब बैठे हुए दिखाई दिए  l नवाब साहब भी शायद एकांत की तलाश में उस डिब्बे में चढ़े थे , परंतु लेखक को वहां आया देखकर उनके चेहरे पर कुछ असंतोष के भाव उभरें  l नवाब साहब ने यात्रा  के दौरान खाने के लिए दो खीरे  खरीद रखे थे  परंतु जब उन्होंने लेखक को देखा तो उनके मन में खीरे खाने के लिए संकोच का भाव उत्पन्न हो गया l परंतु लेखक ने उन खेलों को देख लिया था इसलिए नवाब साहब को अपनी नवाबी दिखाने के लिए उन  खीरों  के साथ कुछ ना कुछ तो करना ही था  l अतः नवाब साहब ने लेखक को अपनी और कनखियों से देखते देखकर  उन्हें दिखाने के लिए दोनों खीरों को अच्छे से धोया  , पोछा व छोटी-छोटी  फांको  में काटकर  उस पर नमक – मिर्च और भुना हुआ जीरा छिड़का  और इसके बाद उन्हें करीने से तोलिए पर सजा कर  खाने के लिए तैयार किया l

(ख)  अक्सर हम विभिन्न चीजों का  रसास्वादन करने के लिए   उन्हें  करीने से तैयार करते हैं l जैसे कि  कभी-कभी नमकीन में प्याज, टमाटर, हरी मिर्च आदि काट कर डालते हैं और नींबू निचोड़ कर उसको  पूरी तन्मयता से खाते हैं |कभी-कभी हम  फलों एवं सब्जियों को काटकर  उनमें नमक मिर्च एवं मसाला मिलाकर चाट  बनाते हैं  और उसे चटकारे लेते हुए खाते हैं l

प्रश्न 6. खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।

उत्तर- नवाबों की सनक और शौक यह रही है कि वे अपनी वस्तु, हैसियत आदि को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते और बताते थे। वे बात-बात में दिखावा करते थे और दिखावे के लिए कुछ भी कर जाते थे । एक बार लखनऊ के ही नवाब  जिन्हें   प्रतिदिन सुबह सवेरे  किसी पार्क में भ्रमण करने  की आदत थी , प्रतिदिन पार्क में आया करते थे। एक दिन एक साधारण सा दिखने वाला आदमी वहीं भ्रमण करने आ गया। उसने नवाब साहब को सलाम किय़ा और पूछा, “नवाब साहब! क्या खा रहे हैं?” नवाब साहब ने गर्व से उत्तर दिया-बादाम’, नवाब साहब ने जेब में हाथ डालकर अभी निकाला ही था कि उनका पैर मुड़ा और वे गिर गए। उनके हाथ से खाने का सामान बिखर गया। उस व्यक्ति ने देखा कि खाने के बिखरे सामान में एक भी बादाम न था सारी मूंगफलियाँ थीं। अब नवाब साहब का चेहरा देखने लायक था।

प्रश्न 7. क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- हाँ, सनक का सकारात्मक रूप भी होता है।  संसार में जितने भी प्रसिद्ध वैज्ञानिक ,  दार्शनिक या चिंतक हुए हैं उनकी सफलता के पीछे उनकी सनक ही  रही थी  । वे अपनी सनक के कारण ही  जीवन में सफलता के शिखर तक पहुंचे  । बिहार के दशरथ माँझी ने  अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद अपनी  सनक के कारण ही पहाड़ काटकर ऐसा रास्ता बना  डाला  जिससे वजीरगंज अस्पताल की दूरी सिमटकर एक चौथाई रह गई। अपनी सनक के कारण वे ‘भारतीय माउंटेन मैन’ के नाम से जाने जाते हैं। इस प्रकार अपनी सनक के कारण व्यक्ति कई बार असंभव दिखाई देने वाले  कार्यों को भी संभव कर दिखाता है l

अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. ” लखनवी अंदाज ‘कहानी के माध्यम से लेखक क्या संदेश देना चाहता है ?

उत्तर – इस कहानी के माध्यम से लेखक यह संदेश देना चाहता है  कि बिना  पात्रों  या घटना के  कोई कहानी नहीं लिखी जा सकती है  l उसी प्रकार  दिखावे की जिंदगी से जीवन के सत्य को उद्घाटित नहीं किया जा सकता है l

प्रश्न 2.  लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट  क्यों खरीदा ?

उत्तर – लेखक  को अधिक दूर नहीं जाना था  और वह  रेलगाड़ी में बैठकर यात्रा करते हुए बाहर के प्राकृतिक नजारों के साथ-साथ किसी नई कहानी के विषय में चिंतन करना चाहता था  l जिसके लिए उसे एकांत की आवश्यकता महसूस हो रही थी  इसलिए उसने सेकंड क्लास का टिकट खरीदा l

प्रश्न 3 . लेखक को नवाब साहब के हाव भाव से क्या महसूस हुआ ?

 उत्तर – लेखक को नवाब साहब के हाव – भाव से महसूस हुआ  की नवाब साहब को लेखक का गाड़ी के डिब्बे में प्रवेश करना पसंद नहीं आया है  l शायद वे अकेले यात्रा करना चाहते थे  और लेखक ने डिब्बे में आकर उनके एकांत में खलल डाल दिया था l

प्रश्न 4. लेखक ने ऐसा क्या देखा कि उसके ज्ञान चक्षु खुल गए?

उत्तर- लेखक ने देखा कि नवाब साहब खीरे की नमक-मिर्च लगी फाँकों को खाने के स्थान पर सँघकर खिड़की के बाहर फेंकते गए। बाद में उन्होंने डकार लेकर अपनी तृप्ति और संतुष्टि दर्शाने का प्रयास किया। यही देखकर लेखक के ज्ञान-चक्षु खुल गए कि इसी तरह बिना घटनाक्रम, पात्र और विचारों के कहानी भी लिखी जा सकती है।

प्रश्न 5. ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक की सार्थकता सिद्ध कीजिए।

उत्तर- ‘लखनवी अंदाज़’ शीर्षक के मूल में व्यंग्य निहित है। इस कहानी में वर्णित स्थान लखनऊ के आसपास का प्रतीत होता है। इसके अलावा नवाब साहब की शान, दिखावा, रईसी का प्रदर्शन, नवाबी ठसक, नज़ाकत आदि सभी लखनऊ के उन नवाबों जैसी है, जिनकी नवाबी कब की छिन चुकी है पर उनके कार्य व्यवहार में अब भी इसकी झलक मिलती है। पाठ को पूरी तरह अपने में समेटे हुए यह शीर्षक ‘लखनवी अंदाज़’ पूर्णतया सार्थक एवं उपयुक्त है।

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